भाजपा से नाराज संत लड़ेंगे निर्दलीय चुनाव

भाजपा से नाराज संत लड़ेंगे निर्दलीय चुनाव

धार्मिक नगरी उज्जैन में चुनावी माहौल में अब संत भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं। बुधवार को क्रांतिकारी संत परमहंस अवधेशपुरी महाराज ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। बता दें कि अवधेशपुरी महाराज शुरू से ही भाजपा के समर्थक रहे हैं, लेकिन इस बार वे पार्टी से टिकट मांग रहे थे जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो इस बार उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। 

स्वास्तिक पीठ के पीठाधीश्वर एवं उज्जैन के क्रांतिकारी संत डॉ. अवधेशपुरी महाराज ने अमर उजाला से चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर करते हुए कहा है कि आगामी 28 अक्टूबर को वह अपना नामांकन निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भरेंगे। संत ने आरोप लगाया कि वे लगातार भाजपा का समर्थन करते आए हैं, लेकिन बीजेपी ने सिंहस्थ भूमि के अतिक्रमण, महाकाल मंदिर में निशुल्क दर्शन, अवैध कॉलोनी की समस्या सहित संतों के विषय पर कभी भी ध्यान नहीं दिया। इसको लेकर संतों ने फैसला किया है कि उज्जैन उत्तर और उज्जैन दक्षिण से संत चुनावी मैदान में होंगे। संतों के मैदान में आने से उज्जैन दक्षिण से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अवधेशपुरी और उत्तर में जल्द ही एक संत का नाम प्रत्याशी के रूप में घोषित किया जाएगा।


16 सितंबर 2023 को स्वास्तिक पीठ के पीठाधीश्वर एवं उज्जैन के क्रांतिकारी संत डॉ. अवधेशपुरी महाराज ने संघ प्रमुख मोहन भागवत एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर देश की राजनीति में योग्य एवं सक्रिय संतों की भागीदारी के लिए पत्र लिखा था। पत्र में संकेत किया था कि जब विधर्मियों द्वारा सनातन पर आक्रमण हो रहा हो और राजनीति के केन्द्र में धर्म आ गया हो तो ऐसे समय में राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज के लिए जीने वाले परोपकारी संतों को राजनीति की मूलधारा से जोड़ना चाहिए। इस विचार पर देशभर में चर्चा भी हुई थी। किंतु घोर आश्चर्य है कि इसके उपरांत भी राजस्थान में तो भाजपा द्वारा कुछ संतों को चुनाव लड़ाया जा रहा है लेकिन पूरे मध्यप्रदेश में धार्मिक पार्टी द्वारा एक भी संत पर भरोसा नहीं किया गया है। भाजपा द्वारा संतों की इस उपेक्षा को संत समाज न केवल संतों का अपमान मान रहा है बल्कि इसे सनातन धर्म एवं धर्मनगरी उज्जैन का भी अपमान मान रहा है। 


अवधेशपुरी महाराज ने कहा कि धार्मिक पार्टी द्वारा मध्यप्रदेश के राजवाड़ा से रामायण में आग लगाने वाले व रावण का मंदिर बनवाने वालों को तो टिकट दिया जाता है, किन्तु रामायण पर पीएचडी व हिन्दू मठ मंदिरों के लिए लड़ने वाले संत को नहीं आखिर क्यों? संतों का कहना है कि भाजपा के 20 वर्षों के शासनकाल में सिंहस्थ क्षेत्र में अतिक्रमण क्यों हुआ? उज्जैन पवित्र नगरी घोषित क्यों नहीं हुई? गौमाता मरने पर मजबूर क्यों है? मां क्षिप्रा मैली क्यों? महाकाल मन्दिर में भक्तों से दर्शन शुल्क क्यों? महाकाल में वीआईपी का सम्मान व सन्तों का अपमान क्यों? केवल हिन्दू मठ मन्दिरों का ही सरकारीकरण क्यों? सिंहस्थ व धर्मनगरी के नेतृत्व में सन्तों की उपेक्षा क्यों? सप्त सागर एवं 84 महादेव की उपेक्षा क्यों? धार्मिक सरकार द्वारा संतों के लिए एक भी योजना क्यों नहीं? मध्य प्रदेश संस्कृति बोर्ड द्वारा संस्कृत व्याकरण व वेदों की उपेक्षा क्यों? युवाओं एवं महिलाओं के लिए रोजगार उपलब्ध कराने में असफल क्यों? विद्युत मंडल द्वारा किसानों के झूठे पंचनामा बनाना एवं खाद में ब्लैकमेलिंग कर अवैध वसूली क्यों? आम नागरिक मूलभूत सुविधाओं के लिए परेशान क्यों? पत्रकारों एवं वकीलों के लिए सुरक्षा कानून क्यों नहीं? ऐसे अनेक ज्वलंत प्रश्नों एवं समस्याओं से संत समाज आहत है इसलिए अब इस धार्मिक नगरी का नेतृत्व करने के किए निर्दलीय लड़ने के लिए मजबूर है।