भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली सांदीपनि आश्रम में है अति प्राचीन कुबेर का मन्दिर

भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली सांदीपनि आश्रम में है अति प्राचीन कुबेर का मन्दिर

भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली सांदीपनि आश्रम में है अति प्राचीन कुबेर का मन्दिर,

धनतेरस से दीपावली तक बड़ी संख्या में पहुंचते हैं भक्त,

उज्जैन । भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली सांदीपनि आश्रम में 10 नवंबर को धनतेरस के अवसर पर कुबेर की प्रतिमा पर इत्र लगाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। आश्रम परिसर में स्थित 84 महादेव मंदिरों में 40 वें क्रम में शामिल कुंडेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में यह प्राचीन प्रतिमा के दर्शन होते है। मान्यता है कि कुबेर की प्रतिमा की नाभि में इत्र लगाने से समृद्धि प्राप्त होती है। मंदिर के पुजारी शैलेंद्र व्यास का कहना है कि मंदिर में विराजित कुबेर की आकर्षक प्रतिमा की बनावट में कुबेर के एक हाथ में सोम पात्र है तो दूसरा हाथ वर मुद्रा में है। कंधे पर धन की पोटली रखी है। प्रतिमा पर तीखी नाक, उभरा पेट, शरीर पर अलंकार से कुबेर का स्वरूप आकर्षक है। कुंडेश्वर मंदिर के गर्भगृह में कुबेर की प्रतिमा के साथ ही बालाजी, वामन देव, भगवान नारायण की प्राचीन प्रतिमाएं भी स्थापित है। यहां पर धनतेरस से दीपावली पर्व तक भक्त दर्शन करने पहुंचते है। मनोकामना के लिए कुबेर की तोंद पर हाथ फेर कर इत्र लगाते है। इससे कुबेर देव प्रसन्न होकर धन धान्य का आर्शीवाद प्रदान करते है। बताया जाता है कि भगवान कृष्ण ने जब महर्षि सांदिपनि के आश्रम से शिक्षा पूरी कर ली थी और वापस घर जाने का समय आया तो गुर दक्षिणा देने के लिए भगवान नारायण के सेवक कुबेर धन लेकर आश्रम आए थे। तब गुरु ने कुबेर का धन लेना अस्वीकार कर दिया था। गुरू ने कृष्ण से कहा कि मेरे पास जो कुछ था वो आपको अर्पण कर दिया। मुझे संपत्ति की कोई चाह नही। इसके बाद कुबेर यहीं विराजमान हो गए। बाद में भगवान कृष्ण के जाने के दौरान गुरू ने कुबेर का खजाना वापस देते हुए कृष्ण को राजा बनने का आशीर्वाद दिया।