महाकाल मंदिर में सबसे पहले बनी दिवाली भस्म आरती जली फुलझड़ियां

महाकाल मंदिर में सबसे पहले बनी दिवाली भस्म आरती जली फुलझड़ियां

उज्जैन | महाकाल मंदिर में सबसे पहले दिवाली बनी। रूप चौदस के दिन सुबह भस्म आरती के दौरान महाकाल का दिवाली पूजन भी किया गया।

भस्म आरती का समय भी करीब आधे घंटे तक बढ़ जाता है। इस दौरान फुलझड़ियां जलाकर आरती की जाती है। इसी के साथ महाकाल की दिवाली पूजा पूरी होती है। दिवाली के दिन रात में महाकाल मंदिर समिति और पुजारी परिवार की ओर से पांच-पांच दीपक महाकाल के सम्मुख रखे जाते हैं। धानी-बतासे का भोग लगाया जाता है।

बाबा महाकालेश्वर के मंदिर में धूमधाम से आज सुबह भस्म आरती में फुलझड़ियां जलाकर दीपावली बनाई गई बाबा महाकाल की भस्म आरती में फुलझड़ियां से बाबा की पूजा की गई, श्रद्धालु भाव महाकाल की इस भस्म आरती को देखने के लिए दूर-दूर से दिवाली के दिन आते हैं ।

आरती के बाद महाकालेश्वर को अन्नकूट में 56 भोग लगाया जाता है। इसके बाद से ही अन्नकूट महोत्सव शुरू हो जाते हैं। फूल मालाओं से मंदिर की सजावट की जाती है। पूजा की यह प्रक्रिया पुजारी परिवार की ओर से की जाती है। सभी इंतजाम और खर्च पुजारी परिवार ही उठाते हैं।

महाकाल में इसलिए पहले मनाते हैं दिवाली

महाकाल को देवों का देव कहा जाता है। वे उज्जैन के राजा हैं। साथ ही, महाकाल दुनिया के सबसे पुराने मंदिरों में से एक हैं, इसलिए यहां सबसे पहले दिवाली मनाने की परंपरा है। उनके दिवाली मनाने के बाद आम श्रद्धालु और जनता दिवाली मनाती है। ये परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है।

ऐसे होती है शुरुआत

तड़के 3 बजे मंदिर के पट खुलने के बाद कपूर आरती हुई। फिर मंदिर की घंटियां बजाने के साथ महाकाल के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का प्रवेश शुरू कर दिया । तैयारियों के बीच पंचामृत स्नान कराया गया।

पुजारी परिवार की महिलाओ ने लगाया उबटन

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पंचामृत स्नान के बाद उबटन लगाया गया। यह उबटन तिल, केसर, चंदन, स्वर्ण व चांदी की भस्म, इत्र सहित कई सुगंधित द्रव्यों से मिलाकर तैयार किया जाता है। इसे पुजारी परिवार की महिलाएं ज्योतिर्लिंग पर लगाकर महाकालेश्वर का रूप निखार ने के लिये लगाया गया।

मंत्रोच्चार से लगाते हैं उबटन

महिलाएं जब ज्योतिर्लिंग पर उबटन लगाती हैं, तब महामृत्युंजय मंत्र समेत अन्य वैदिक मंत्रों का पाठ किया जाता है। यह प्रक्रिया करीब 10 मिनट तक चलती है। पुजारी परिवार की सभी सुहागन महिलाएं यह उबटन पूजा करती हैं। यह पूजा साल में केवल एक बार ही होती है। केवल पुजारी परिवार की महिलाएं ही करती हैं।