हनुमान जी की इन 4 बातों में छिपा है कामयाबी का रास्ता

हनुमान जी की इन 4 बातों में छिपा है कामयाबी का रास्ता

हिंदू धर्म में हनुमान जयंती के दिन घर-घर में बजरंगबली की पूजा की जाती है.इस साल हनुमान जयंती 6 अप्रैल 2023 को है. हनुमान भक्तों को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है. चैत्र माह की पूर्णिमा पर हनुमान जी के भक्त भजन, कीर्तन, व्रत-पूजा, पाठ, मंत्र जाप, शोभा यात्रा निकालते हैं. हनुमान जी बहुत शक्तिशाली, पराक्रमी, तेजस्वी होने के साथ-साथ एक कुशल प्रबंधक भी थे. हनुमान जी के इन 4 गुणों को जीवन में अपना लिया तो  मन, कर्म, बल, बुद्धि और वाणी पर संतुलन बनाए में पारंगत हो जाएंगे. हर काम को न सिर्फ बेहतर ढंग से कर पाएंगे बल्कि उसमें सफलता भी मिलेगी.

बजरंगबली को बहुत बलशाली थी और बुद्धिमान थे लेकिन उनमें हमेशा कुछ नया सीखने की लगन लगी रहती थी. पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य देव ने बजरंगबली का गुरु बनने से इनकार कर दिया, क्योंकि सूर्य का गतिमान रहना जरुरी है, ऐसे में बजरंगी शिक्षा कैसे ग्रहण करते लेकिन हनुमाना जी ने चतुर बुद्धि का उपयोग करते हुए सूर्य देव से कहा कि “मैं आपके सामने उल्टी अवस्था में चलूंगा और आप से पढूंगा ” बजरंगबली की शिक्षा ग्रहण करने की ललक को देखकर सूर्य देव अति प्रसन्न हुए और फिर उन्होंने मारुति नंदन को विद्या प्रदान की. इससे यह सीख मिलते हैं कि हालात कैसे भी हो अगर सीखने की चाह है तो रास्ता अपने आप निकल जाता है और ज्ञान के बलबूते ही व्यक्ति सफलता को प्राप्त करता है

लक्ष्य पाने के लिए झुकना भी जरुरी है  --- लंका की ओर बढ़ते समय हनुमान जी को बीच रास्ते में सुरसा नाम की नाग माता ने रोक लिया और वह उन्हें खाना चाहती थी. हनुमान जी कई बार समझाने पर भी नहीं मानी और अपना शरीर बड़ा कर लिया, फिर बजरंगबली ने भी शरीर दुगना बड़ा लिया. सुरसा ने फिर वही प्रक्रिया दोहराई, केसरी नंदन समझ गए कि सुरसा का अहम उसके लिए महत्वपूर्ण है, ऐसे में उन्होंने तत्कार खुद को छोटा कर लिया ओर उसके मुंह में से घूम कर निकल आए. सुरसा हनुमान जी की चतुराई से प्रसन्न हुई और उन्हें जाने दिया. इस कथन से यह सीख मिलती है कि लक्ष्य जब बड़ा हो तो कई तरह के अवरोध आते हैं, ऐसे में हमें समय और परिस्थिति को देखते हुए उससे निपटने का समाधान खोजना चाहिए. जब बात अहम की हो तो बल से नहीं बुद्धि से काम लेना चाहिए.

अपनी शक्तियों का सही इस्तेमाल --- ‘सूक्ष्म रूप धरी सियंहि दिखावा, विकट रूप धरी लंक जरावा।’ - इस श्लोक में बताया है कि हनुमान जी ने सीता के सामने खुद को लघु रूप (छोटे रूप) में रखा, क्योंकि यहां वह पुत्र की भूमिका में थे और लंका की हर खबर से वाकिफ होना चाहते थे. ऐसे दुश्मनों के बीच होते हुए भी वह पहचाने नहीं गए और राम तक लंका की हर खबर पहुंचाई. वहीं तुलसीदास जी कहते हैं कि जरुरत पड़ने पर वह राक्षसों के लिए काल बन गए. शत्रुओं के बीच दोस्त खोज लेने की दक्षता भी विभीषण प्रसंग में दिखाई देती है. एक ही स्थान पर अपनी शक्ति का दो तरीके से उपयोग करना हनुमान जी से सीखा जा सकता है.

कुशल नीति --- लंका पहुंचने से पहले हनुमान जी ने पूरी रणनीति बनाई थी. वह जानते थे कि लक्ष्य महान है इसमें कई तरह की बाधाएं आएंगे. ऐसे में उन्होंने असुरों की इतनी भीड़ में भी विभीषण जैसा सज्जन ढूंढा. उससे मित्रता की और सीता मां का पता लगाया. भय फैलाने के लिए लंका को जलाया, इस प्रकार पूरे मैनेजमेंट के साथ अपने काम को अंजाम दिया. इससे यह सीख मिलती है कि आसमान की ऊंचाइयों को छूना है, असंभव नजर आ रही सफलता को प्राप्त करना है कि चालाकी, चतुराई, विनम्रता, दूरदर्शिता और साहस का होना बहुत जरुरी है.