यात्रा का असर जो भी हो, राहुल राष्ट्रीय विकल्प जरूर बन गए!

यात्रा का असर जो भी हो, राहुल राष्ट्रीय विकल्प जरूर बन गए!

यात्रा का असर जो भी हो, राहुल राष्ट्रीय विकल्प जरूर बन गए!

(निरुक्त भार्गव) | राहुल गांधी की “भारत जोड़ो यात्रा” की मध्यप्रदेश में धमाकेदार एंट्री हो चुकी है. एक पखवाड़े के दौरान बुरहानपुर, खण्डवा, खरगोन और इंदौर जिले को छूते हुए पदयात्री महाकाल जी के आंगन में प्रविष्ट होंगे. और फिर उज्जैन जिले से गुजरते हुए आगर जिले के सुसनेर होते हुए झालावाड़ के रास्ते राजस्थान पहुंचेंगे. इस बीच इस यात्रा के प्रभावों, खासकर सियासी परिणामों को लेकर, आम लोगों में चर्चाओं का जबरदस्त दौर शुरू हो गया है. जिज्ञासाएं बढ़ रही हैं कि क्या राहुल गांधी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बरक्स राष्ट्रीय विकल्प के रूप में उभर पाएंगे?

 एक ‘अनिच्छुक’ राजनीतिज्ञ, गांधी घराने के ‘युवराज’ होने के कारण अकूत सम्पत्ति के वारिस राहुल को बीते सालों में कितना जलील किया गया है: संसद के बाहर और भीतर, मुख्यधारा के प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा और डिजिटल मीडिया मंचों पर. पोगो टीवी के ‘छोटा भीम’ के  “पप्पू” का किरदार तो उनके नाम के साथ चस्पा ही कर दिया गया. पंडित जवाहरलाल नेहरू ही नहीं बल्कि इंदिरा गांधी-फिरोज़ गांधी-राजीव गांधी-सोनिया गांधी-प्रियंका-रॉबर्ट वाड्रा को भी किस तरह अपशब्दों से नवाजा गया, सब की जानकारी में है. पर इतना सब हो जाने और लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं में कांग्रेस पार्टी को जनता द्वारा एक प्रकार से नकार दिए जाने के बावजूद राहुल टस-से-मस नहीं हुए! वो चाहते तो विश्व के किसी भी खूबसूरत कोने में जाकर शान से गुजर-बसर कर सकते थे! उनपर बहुत दबाव आए होंगे अपने निर्णयों और सिद्धांतों को बदलने के, मगर उन्होंने अपना मार्ग नहीं छोड़ा!

 लेकिन, उन्होंने तो एक सर्वथा 'अनसोचा' फैसला कर लिया, भारतवर्ष की पद यात्रा करने का. 07 सितंबर 2022  को वे कन्याकुमारी से अपनी मंज़िल की तरफ कूच कर गए, “भारत जोड़ो यात्रा” के बैनर तले. तमिलनाडु, केरल, आंध्रा प्रदेश, तेलंगाना राज्य, कर्नाटक और महाराष्ट्र का तयशुदा सफर तय कर वो मध्यप्रदेश पहुंचे हैं. बिना किसी बाधा और शारीरिक व्याधि के वे कोई 2000 किलोमीटर पैदल चल चुके हैं. लगभग 150  दिनों की अवधि में 3500 किलोमीटर से भी ज्यादा का रास्ता पार कर उन्हें श्रीनगर (कश्मीर) जाकर अपना लक्ष्य हासिल करना है. सांप्रदायिक सद्भाव, राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत करने तथा भाजपा-नीत केंद्र सरकार की आर्थिक मोर्चे पर कथित विफलताओं, भ्रष्टाचार के मामलों, महंगाई और बेरोजगारी के साथ-ही तमाम केन्द्रीय एजेंसियों में मोदी-शाह के असाधारण हस्तक्षेप का विरोध करने की गरज से ये यात्रा संयोजित की जाना प्रचारित की गई है.

 कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों ने इस पूरी यात्रा का जो रूट निर्धारित किया है और एक बड़ा संकल्प यानी “भारत जोड़ो” स्लोगन देकर अनेकानेक गैर-सरकारी एवं अराजनीतिक संगठनों को गुत्था करने का प्रयास किया है, उसके प्रभाव तो दिख ही रहे हैं. स्वयं-भू नेशनल मीडिया के अलावा तथाकथित मुख्यधारा के समाचार माध्यमों ने मोटे तौर पर राहुल गांधी के वर्तमान अभियान को प्राथमिकता वाला महत्त्व नहीं दिया है और इसके उलट हास्यास्पद प्रसंगों को उछालने का काम किया है. इसके बाद भी आम लोगों के साथ-ही समाज के भिन्न-भिन्न सशक्त हस्ताक्षरों ने जिस तरह इस पद यात्रा में हिस्सेदारी की है और इसे एक सैलाब का स्वरूप दे दिया है, उसके संकेतों को समझा जाना आवश्यक है. धनराशि की किल्लत से जूझ रही कांग्रेस पार्टी के इस कार्यक्रम से जुड़कर आम लोगों ने जिस उत्साह का प्रदर्शन किया है उसमें आत्मीयता, राष्ट्रीयता और अनुशासन के रंग बिखरे दिखाई देते हैं.

 ऐसे दौर में जब राजनीति के शिखर पुरुष अहम् में डूबे हुए हैं और सिर्फ “मैं-ही-मैं” में लिप्त हैं, राहुल गांधी आम लोगों से संवाद करते दिख रहे हैं. वे दूसरों के मन की बात को जानने और समझने में लगे हुए हैं. उनके साथ चलने वाले लोग बताते हैं कि उनमें पेशेवर नेताओं जैसे लटके-झटके नहीं हैं. उनकी भाषा में विनम्रता झलकती है और आंखों में सम्मान की भावना. वो उनसे संवाद करनेवाले लोगों से ही सवाल कर लेते हैं और उनके जवाब सुनकर ही अपना वैसा ही मत प्रकट करते हैं. जाहिर है, राहुल गांधी एक मकसद के लिए ही इतना बड़ा और कठिन उपक्रम कर रहे हैं. अपनी पार्टी को चुनाव की दृष्टि से सत्ता में लाना अथवा बनाए रखना उसमें शामिल है. परंपरागत रूप से दक्षिणी राज्यों में ताकतवर रही कांग्रेस पार्टी की जड़ों को सींचना, पश्चिमी राज्यों के आदिवासी एवं दलित समाज के वोटों की पेशबंदी करना और मध्य और उत्तरी राज्यों में मुस्लिम वोटरों को साधना भी उनका टारगेट है.

 यात्राएं तो पहले के ज़माने में खूब निकली हैं: रथ यात्राओं के अपने जलवे हुआ करते थे. छुट-पुट पदयात्राएं भी व्यतीत समय का हिस्सा हैं. पर इन सब में एक किस्म की क्षणभंगुरता थी. आज देश में करीब 135 करोड़ लोगों की आबादी है और 35 वर्ष तक के नागरिकों की संख्या 65 प्रतिशत है. इस व्यापक जनसंख्या को फालतू के मुद्दों में लम्बे काल तक उलझाए रखना संभव नहीं है. असल में, भारतवर्ष की ये आबादी ठोस नीतियों और कार्यक्रमों और उनके परिणाम देखना चाहती है. इस लिहाज से देखा जाए, तो राहुल गांधी एक ‘मिशन’ मोड में प्रतीत होते हैं. वे अब बेहतर ढंग से समूचे जनसरोकारों को भुनाने में लगे हैं. उन्हें न तो राजनीतिक नफा-नुकसानों की चिंता है, न प्रकट तौर पर किसी उच्च पद की महत्वाकांक्षा है, पर जिस तरह और जिस पैमाने पर आरएसएस, भाजपा और केंद्र व राज्यों की सरकार ‘रियेक्ट’ कर रही है, वो उन्हें महानायक मान लेने का ही तो संकेत है!