श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर पांडाल में समस्त श्रवणकर्ताओं को संकल्प दिलाया सदैव मधुर बोलना चाहिए

श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर पांडाल में समस्त श्रवणकर्ताओं को संकल्प दिलाया सदैव मधुर बोलना चाहिए

विनम्रता से जीवन के क्लेशों से मुक्ति तो मिलती ही है साथ ही अपनी वाणी के होने वाले पापों से भी आप बच जाते हैं । 
श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर पांडाल में समस्त श्रवणकर्ताओं को संकल्प दिलाया सदैव मधुर बोलना चाहिए और सबका सम्मान करना चाहिए 

उन्हेल I सार्वजनिक श्रीमद्भागवत कथा समिति द्वारा सुप्रसिद्ध कथा वाचक वृन्दावनवासी पूज्य श्री कृष्णप्रिया जी महाराज महाराज के मुखारबिंद से स्थानीय नया बसस्टेंड स्थित मैदान में कथा के द्वितीय दिवस वराह अवतार, कनु कर्दम चरित्र, कपिलोपदेश, सती चरित्र, ध्रुव चरित्र, का प्रसंग बताया दीदी ने कथा में बताया हमारे अस्तित्व को चार चीजे चलाती है शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा इनके बगैर मानव मात्र की कल्पना नहीं की जा सकती l भक्त और श्रोता को जोड़ने वाले यज मान होते है साथ ही कमाना है तो धन धान के साथ धर्म को भी कमाओ साथ ही सत्कर्म करने और दान पुन्य पर ज्यादा जोर दिया साथ ही यह बताया की इंसान का शारीर क्या कर रहा है यह महत्वपूर्ण नहीं है मन और कर्म क्या कर रहे है मन क्या सोच रहा है यह महत्वपूर्ण होता है मन का सम्बन्ध बुद्धि से होता है और अगर आपकी तीनो कारक चल रहे है शरीर, मन और बुद्धि तो उस चेतना का नाम आत्मा है अगर शारीर में से आत्मा चली गई तो सब कुछ समाप्त हो जाता है भागवत कथा में अनुष्ठान, भक्ति और ज्ञान प्राप्त का सीधा साधन है इन तीनो का समावेश ही श्रीमद्भागवत कथा है जीवन का सार क्या है यह पूछने पर पांडाल में स्थित धर्मप्रेमी जनमानस के मन में यह भाव आया की सुख ही जीवन का सार है परन्तु कथावाचक के अनुसार जीवन का असली सार श्रीमद्भागवत कथा में छुपी है कथा का अच्छे और सच्चे मन से श्रवण करने में और उसे समझने में जीवन का सार छुपा है l हिन्दू शब्द दार्शनिक है यह धर्म या समाज का नाम नहीं है शास्त्र में कही भी हिन्दू शब्द का उपयोग नहीं है शास्त्रों में सनातन शब्द का उपयोग हुवा है, सनातन का अर्थ है जिसका कोई अंत नहीं और हमारे धर्मं का कोई अंत नहीं है l विश्व में कभी 45 सभ्यताए थी आज दो ही सभ्यता शेष है जिसमे एक अर्ध्कालीन सभ्यता और एक पूर्ण कालीन सभ्यता है और वह सभ्यता है सनातन सभ्यता है बाकी सभ्यता तो आक्रमणकारियों ने समाप्त कर दी और सनातन सभ्यता से हमारा मूलतः जुड़ने के कारण ही यह सभ्यता आक्रमणों के बाद भी टिकी हुई है l


कथावाचक दीदी ने बताया  "भगवान दुष्टों के संहार के लिए नही  अपितु अपने भक्तों के लिए अवतार लेते हैं, उन्हें तारने के लिये आते हैं। जिस प्रकार कोई मनुष्य अनजाने में किसी गहरे गड्ढे में गिर जाए और कोई अन्य व्यक्ति उसको बचाने के लिए रस्सी से उस गड्ढे में उतरे । दोनों को गड्ढे में देखने से प्रतीत होगा दोनों की स्थिति समान है किन्तु अंतर है। एक गिर गया है और दूसरा उसे बचाने के लिए जान बूझकर गड्ढे में उतरा है। उसी प्रकार हम भी संसार और मायारूपी इस गड्ढे में गिर गए हैं हमे बचाने के लिए ही प्रभु अवतार लेकर आते हैं। अगर वो अवतार नही लेते तो कहाँ से मिलती हमें कथाएं, अयोध्या, मथुरा,काशी चार धाम इत्यादि" कथा में देवी जी ने कहा कि विनम्रता ही इंसान को महान बनाती है, जिस इंसान के जीवन में विनम्रता नहीं है वह इंसान सूखे वृक्ष के समान है। भगवान राम, हनुमान, श्रीकृष्ण प्रभु के सभी रूप हमें विनम्रता सिखाते हैं। विनम्रता से जीवन के क्लेशों से मुक्ति तो मिलती ही है साथ ही अपनी वाणी के होने वाले पापों से भी आप बच जाते हैं। सदैव मधुर बोलना चाहिए और सबका सम्मान करना चाहिए । मनुष्य से गलती हो जाना बड़ी बात नहीं, लेकिन ऐसा होने पर समय रहते सुधार और प्रायश्चित जरूरी है, ऐसा नहीं हुआ तो गलती पाप की श्रेणी में आ जाती है। दीदीजी ने पांडवों के जीवन में होने वाली श्रीकृष्ण की कृपा को बड़े ही सुंदर ढंग से दर्शाया। और कहा जो धर्म के मार्ग पर होते हैं उनके साथ ही भगवान खड़े होते हैं और उन्हीं की विजय होती है लेकिन दुर्योधन जैसे अधर्मियों का सब कुछ होते हुए भी विनाश ही होता है । उन्होंने कहा कि राजा परीक्षित अत्यंत धर्मात्मा थे लेकिन कलियुग के प्रभाव के कारण ऋषि से श्रपित हो जाते हैं, कि अगले सात दिवस पश्चात उनकी मृत्यु हो जाएगी। उसी के पश्चाताप में वह शुकदेव जी के पास जाते हैं। और सात दिवस में अपनी मुक्ति का उपाय खोजते हैं।

तब सुखदेव जी उन्हें जीवनदायनी श्रीमद्भागवत कथा को श्रवण कराते हैं। भगवत भक्ति एक ऐसा उत्तम निवेश है, जो जीवन में परेशानियों का उत्तम समाधान देती है। साथ ही जीवन के बाद मोक्ष भी सुनिश्चित करती है । कथा व्यास ने कहा कि द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने सूर्यदेव की उपासना कर अक्षयपात्र को प्राप्त किया। हमारे पूर्वजों ने सदैव पृथ्वी माँ का पूजन व रक्षण किया। इसके बदले प्रकृति ने मानव का रक्षण किया, भागवत के श्रोता के अंदर जिज्ञासा और श्रद्धा होनी चाहिए। परमात्मा दिखाई नहीं देता है ,वह हर किसी में बसता है देवी जी ने शुक देव के जन्म का वृतांत सुनाया, सती चरित्र, परीक्षित जन्म, का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया, अपने सभी प्रकार के भक्तो के साथ शिवजी की बारात आई और भगवान् शिव पार्वती का विवाह संपन्न हुवा साक्षात् में साक्षात में पांडाल शिवमय हुवा 
आरती रवि प्रताप सिंह बुंदेला, अनिल पटेल, पाटीदार परिवार कलालखेड़ी, संजय वाक्तालिया, डॉ ओ पी बैरागी, डॉ सोनी, सत्यनारायण मेहता गोंटू सेठ, इश्वर मेहता, सत्यनारायण मेहता एम्बी, बंटू पोरवाल आदि ने लाभ लिया l कल शनिवार को श्रीमद्भागवत कथा में भरत चरित्र, आजमिलका चरित्र, नरसिंह अवतार के चित्रण का प्रसंग सुनाया जायेगा